आज का दिन: निर्जला एकादशी और आत्मशुद्धि का पर्व
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निर्जला एकादशी केवल एक उपवास नहीं, बल्कि एक आध्यात्मिक अनुशासन है। यह दिन हमें संयम, साधना, सेवा और श्रद्धा की प्रेरणा देता है। भीमसेन जैसे वीर योद्धा ने भी इसका पालन कर आत्मिक शांति प्राप्त की, तो हम जैसे सामान्य जन भी इस दिन व्रत, ध्यान और दान के माध्यम से ईश्वर की कृपा के पात्र बन सकते हैं।
आज का दिन सनातन धर्म के अनुयायियों के लिए अत्यंत पावन और पुण्यदायी है। आज ज्येष्ठ मास की शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि है, जिसे निर्जला एकादशी के नाम से जाना जाता है। यह एकादशी सभी 24 एकादशियों में सबसे महत्वपूर्ण मानी जाती है क्योंकि यह अकेले ही सभी एकादशियों का फल प्रदान करती है। इस दिन श्रद्धालु उपवास रखकर भगवान विष्णु की आराधना करते हैं और जल तक ग्रहण नहीं करते – इसी कारण इसे ‘निर्जला’ कहा गया है।
✨ निर्जला एकादशी का महत्व
हिंदू धर्म में एकादशी व्रत को भगवान विष्णु की कृपा प्राप्ति का विशेष साधन माना गया है। प्रत्येक पक्ष में एक एकादशी आती है – कृष्ण और शुक्ल, इस प्रकार वर्ष में 24 एकादशियां होती हैं। लेकिन कुछ लोग नियमित रूप से एकादशी का व्रत नहीं रख पाते। ऐसे श्रद्धालुओं के लिए यह एक दिन – निर्जला एकादशी – सभी व्रतों के बराबर पुण्य प्रदान करता है।
पुराणों के अनुसार, भीमसेन (महाभारत के भीम) ने अन्य एकादशी व्रतों में अन्न का त्याग करना कठिन पाया, अतः महर्षि व्यास के सुझाव पर उन्होंने सिर्फ निर्जला एकादशी का कठोर व्रत किया और कहा गया कि इस एक व्रत से उन्हें सभी एकादशियों का फल प्राप्त हुआ।
🧘 व्रत की विधि और नियम
इस दिन व्रती सूर्योदय से पहले उठकर स्नान कर पवित्र संकल्प लेता है। उसके बाद दिन भर जल, अन्न, फल आदि किसी भी वस्तु का सेवन नहीं करता – केवल भगवान विष्णु का ध्यान और पूजन करता है। कुछ श्रद्धालु संध्या आरती के बाद तुलसी जल या चरणामृत ग्रहण करके व्रत का पारण करते हैं, जबकि कुछ अगले दिन द्वादशी तिथि में सूर्योदय के बाद व्रत खोलते हैं।
व्रत के नियम इस प्रकार हैं:
- ब्रह्ममुहूर्त में स्नान और संकल्प
- पूरे दिन उपवास – जल भी वर्जित
- विष्णु सहस्त्रनाम, गीता और भागवत का पाठ
- रात्रि जागरण एवं भजन-कीर्तन
- द्वादशी को ब्राह्मणों को अन्न-जल दान और व्रत का पारण
📖 निर्जला एकादशी की पौराणिक कथा
भीमसेन को अन्न का अत्यधिक मोह था। जब उन्होंने देखा कि उनके भाई – युधिष्ठिर, अर्जुन, नकुल और सहदेव सभी एकादशी का पालन करते हैं, तो उन्होंने भी इस पुण्य को प्राप्त करने की इच्छा जताई। लेकिन भोजन के बिना रहना उनके लिए संभव नहीं था। तब महर्षि व्यास जी ने उन्हें एक उपाय बताया – "यदि तुम वर्ष भर की सभी एकादशियों का पुण्य प्राप्त करना चाहते हो, तो निर्जला एकादशी का व्रत करो। इस दिन जल भी ग्रहण नहीं किया जाता, और यह सबसे कठिन व्रत माना जाता है।"
भीमसेन ने इस व्रत को पूरी निष्ठा से किया और उन्हें समस्त एकादशियों का फल प्राप्त हुआ। तभी से यह परंपरा बनी कि यदि कोई अन्य एकादशी नहीं कर सकता तो कम से कम निर्जला एकादशी अवश्य करे।
🌿 दान और सेवा का महत्व
इस दिन गरीबों और ब्राह्मणों को जल, घड़ा, छाता, कपड़े, सत्तू, फल और गंगा जल का दान करना अत्यंत पुण्यदायी माना गया है। अनेक स्थानों पर जल से भरे मटके, शरबत, लस्सी और छाछ का वितरण भी किया जाता है। यह कार्य सामाजिक समरसता और सेवा की भावना को भी जाग्रत करता है।
धार्मिक दृष्टिकोण से दान देने का अर्थ केवल वस्तुएं देना नहीं, बल्कि अपने भीतर की तामसिक वृत्तियों का त्याग भी है – जैसे क्रोध, ईर्ष्या, आलस्य, कटुता और घृणा। यदि व्यक्ति आज के दिन इन नकारात्मक प्रवृत्तियों का त्याग करे, तो वह सच्चे अर्थों में एकादशी का पालन करता है।
🛕 विशेष पूजा स्थल और आयोजन
आज के दिन अयोध्या, वृंदावन, हरिद्वार, द्वारका, उज्जैन जैसे धर्मस्थलों पर विशेष भीड़ उमड़ती है। मंदिरों में शंख-घंटाध्वनि, भजन-कीर्तन, विष्णु सहस्त्रनाम और गंगा स्नान की विशेष व्यवस्था रहती है।
अयोध्या में तो इस दिन रामलला के साथ-साथ रामदरबार की भी भव्य झांकी सजाई जाती है। राम की प्राण प्रतिष्ठा के अवसर पर हजारों श्रद्धालु वहां दर्शन को उमड़ते हैं। कई भक्तों के लिए यह दिन केवल व्रत ही नहीं, रामनाम जप और साधना का विशेष पर्व बन जाता है।
🔮 आधुनिक समय में निर्जला एकादशी
आज की तेज़-रफ्तार जिंदगी में जहां लोग रोज़मर्रा की ज़िम्मेदारियों में उलझे रहते हैं, वहां यह एक दिन आत्मनिरीक्षण और साधना के लिए एक शानदार अवसर देता है। जब व्यक्ति एक दिन के लिए अन्न और जल से दूर होकर आत्मा के निकट आता है, तो उसे ध्यान, संयम और आत्मशुद्धि का वास्तविक अनुभव होता है।
यह व्रत स्वास्थ्य के दृष्टिकोण से भी लाभकारी माना गया है – एक दिन का उपवास शरीर को विषैले तत्वों से मुक्त करता है और आंतरिक शुद्धि में सहायक होता है। इस एक दिन का व्रत वर्ष भर के सभी व्रतों का फल प्रदान करता है – परंतु केवल नियमों का पालन और पवित्र मन से की गई पूजा ही इसका असली सार है।
|| ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ||
|| हरि बोल || जय श्री विष्णु ||
Edited By: वागड़ संदेश ब्यूरो