आपातकाल में संघ और जनसंघ कार्यकर्ताओं का योगदान अमिट, नारीशक्ति ने निभाई थी अपनी अहम् भूमिका — अनिता कटारा

आपातकाल में संघ और जनसंघ कार्यकर्ताओं का योगदान अमिट, नारीशक्ति ने निभाई थी अपनी अहम् भूमिका — अनिता कटारा

सागवाड़ा | आपातकाल की 50वीं बरसी पर पूर्व विधायक अनिता कटारा ने कहा– 1975 का आपातकाल लोकतंत्र पर हमला था, संघ-जनसंघ कार्यकर्ताओं ने भूमिका निभाकर दी प्रेरणा।

सागवाड़ा । आपातकाल की 50वीं बरसी पर भाजपा राजस्थान प्रदेश मंत्री और पूर्व विधायक अनिता कटारा ने प्रेस नोट जारी कर बताया कि “25 जून 1975 को देश पर थोपा गया आपातकाल लोकतंत्र पर सीधा हमला था । उस समय संविधान, अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और नागरिक अधिकारों को कुचल दिया गया । लेकिन इस संकट की घड़ी में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और भारतीय जनसंघ के कार्यकर्ताओं ने जो भूमिकाएं निभाईं, वे आज भी लोकतंत्र की रक्षा की प्रेरणास्रोत हैं ।
 
संघ के स्वयंसेवक बने लोकतंत्र के अज्ञात प्रहरी
 
कटारा ने बताया कि “जब पूरे देश में डर और दमन का माहौल था, तब राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के हजारों स्वयंसेवकों ने भूमिगत रहकर लोकतंत्र को जीवित रखने का कार्य किया । उन्होंने न सिर्फ सूचनाएं पहुंचाई, आंदोलनकारियों को शरण दी, बल्कि विचारों की मशाल भी जलाए रखी । संघ की अनुशासित और राष्ट्रनिष्ठ संरचना ने उस कठिन समय में लोकतंत्र को नैतिक शक्ति दी ।” उन्होंने बताया कि “संघ के कई स्वयंसेवकों को महीनों जेल में यातनाएं दी गईं। उन पर कोई केस नहीं था, सिर्फ विचारों के कारण वे बंदी बनाए गए।"
 
आदिवासी अंचल में संघ और जनसंघ का संगठनात्मक साहस
 
उन्होंने बताया कि डूंगरपुर-बांसवाड़ा जैसे आदिवासी अंचल में संघ कार्यकर्ताओं ने जनसंघ के आंदोलन को संगठनात्मक रूप से जीवित रखा । क्षेत्र में कई स्थानीय नेताओं को जेल में डाल दिया गया था, पर उनके पीछे संघ के सैकड़ों स्वयंसेवक खड़े रहे । उन्होंने गांव-गांव में संघ की शाखाएं चलाई जिससे लोकतंत्र के लिए आंतरिक प्रेरणा मिलती थी ।
 
महिलाओं का योगदान रहा अनुकरणीय
 
अनिता कटारा ने आपातकाल में महिलाओं की भूमिका को भी रेखांकित करते हुए कहा कि महिलाओं ने भी अपने स्तर पर दमननीति और गिरफ्तारी के खिलाफ आवाज़ उठाई। महिलाओं ने सशक्त और साहसी, संदेशवाहक, रक्षक और प्रेरणास्रोत की भूमिकाएं निभाईं । उन्होंने कहा कि “आज जब हम सभी अमृतकाल की ओर बढ़ रहे हैं, तो यह याद रखना जरूरी है कि 1975 में जो सत्य की मशाल जली थी, वह संघ और जनसंघ के बल पर ही बुझने नहीं दी गई । यही प्रेरणा है हमारे ‘नवभारत’ की।”
 
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